Papan Pathari Karu Prtiksha
पांपण पाथरी करूँ प्रतिक्षा . . .
पांपण पाथरी करुं प्रतिक्षा , दीक्षा लेवा काज ,
नानी उमरे संसार छोडूं , समजण आवी आज ,
सुंदर आ दीक्षा जीवन , मळशे क्यारे संयम जीवन ( 2 ) . . .
संसार सागर घोर अपार , आवे नहीं एनो पार ,
मूरख बनी फर्यो अहिंया , डूब्यो छु वारंवार ,
करूँ छु हवे विचार , क्यारे वरु शिवनार . . . 1
काची सेकन्डे जीवन जाशे , नथी कोई आधार ,
संयम साधी अनंत तर्या , आनंद अपरंपार ,
भाव थाशे मारो साकार , पछी थाशे नैया पार . . . 2
राग - द्वेषथी बंधाय कर्मों , दुःख एनुं चिक्कार ,
समभावथी भावित थई करवो छे आत्मोद्धार ,
हवे तो आशा ज आधार , जल्दी करौं संयम सत्कार . . . 3
केशनो लोचने निर्दोष गोचरी , खुल्ला पगे विहार ,
कष्टों उत्तम सही - सहीने सफळ करवो अवतार ,
संयम विना नहीं उद्धार , क्यारे थाशे भवनो पार . . 4
अनाचार थी दुर रहेगा , घारवा पंचाचार ,
जयंत गुरुना सानिध्यमां , भणुं जिनागम सार ,
प्रभु बनजो भाव दातार , जल्दी करूँ चारित्र स्वीकार . . 5
पू . मुनि श्री जिनागमरत्न वि . म . सा .
( त्रिस्तुतिक समुदाय )
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