Pancham kal me jo inshan jain diksha song - पंचम काल में जो इन्सान

Pancham kal me jo inshan jain diksha song

पंचम काल में जो इन्सान 

( राग : आज पुरानी राहों से . . . ) 

पंचमकाल में जो इन्सान , साधु बने वो महान है , 
देवों से राजा से बड़ा , जैन मुनि का मान है . . . हो . . . हो . . . 

सुख और भोग से , राग के रोग से , मिलन - वियोग से रहे परे , 
समताधारे ममता त्यागे , हर परिषह हँस के सहे , 
महाव्रतधारी ये अविकारी , धन जिनका आगम ज्ञान है . . . पंचमकाल . . 1 

मैत्री भावना , मंगल कामना , क्षमापना हर प्राणी से , 
तन मन वचन से जैन साधु , रखे इन्द्रिय निगरानी में , 
न प्रमाद करे , न विवाद करे , समकित का देते दान है . . . पंचमकाल . . . 2 

सिद्धशिला को , लक्ष्य में रख के , जिनाज्ञा पालन करे , 
तप - जप योग से कर्म खपाते , सदा ये पैदल ही चले , 
कुदरत के नियम नहीं तोड़े कभी , 
परहित जीवन का विधान है . . . पंचमकाल . . . 3 

भूख - प्यास क्या सरदी - गरमी , या पीड़ा कोई तन - मन की , 
ना आकुल , ना व्याकुल होते , आनंद में करते भक्ति , 
नाकोड़ा दरबार में प्रदीप नमें , ये जैन मुनि वरदान है . . . पंचमकाल . . . . 

प्रदीपजी ढातावत 
मुंबई 

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