वीर प्रभुजी पधारो राज, वीर प्रभुजी पधारो;
विनंती मुज अवधरो राज, वीर प्रभु – ए आंकणी
चंदनबाळा अति सुकुमाळा, बोले वयण रसाळा;
हाथने पगमां जडी दिया ताळा, सांभळो दिनदयाळा.
राज….
कठिन छे मुज कर्म कहाणी, सुणो प्रभु मुज वाणी,
राजकुमारी हुं चौटे वेचाणी, दुःखतणी नथी खामी.
राज….
तातज मारो बंधन पडीयो, माता मरण ज पामी,
मस्तकनी वेणी कतराणी, भोगवी मे दुःखखाणी.
राज…
मोंघी हती हुं राजकुटुंबमा, आज छुं त्रण उपवसी,
सुपडाना खणे अदडना बाकुळां, शुं कहुं दुःखनी राशि.
राज….
श्रावण भादरवा मासनी पेरे, वरसे आंसुनी धारा,
गद्द गद्द कंठे चंदनबाळा, बोले वचन करुनाळा.
राज…
दुःख ए सघळुं भूलायुं पूर्वनुं, आपना दर्शन थातां,
दुःख ए सघळुं हैये ज आवे, प्रभु तुज पाछा जाता.
राज….
चंदन बाळानी अरीजी सुणीने, नीर नयनमां निहाळे,
बाकुळा लई वीर प्रभु पधारे, दया करी दिन दयाळे.
राज…
सोवन करी त्यां थई वृष्टि, साडी बार कोडी सारी,
पंच दिव्य तत्काळ प्रगटयां, बंधन सर्व विदारी.
राज…
संयम लई काज सुधारे, चंदनबाळा कुमारी,
वीर प्रभुनी साहुणी पहेली, पंच महाव्रत धारी.
राज….
कर्म खापवी मुक्ति सीधाव्या, धन्य सति शिरदारी,
विनय विजय कहे भाव धरीने, वंदु हुं वारंवारी.
राज….
(रचना: प. पू. विनयविजयजी म. सा.)
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