Avanti Parshwanath

#मंदिरों के शहर #उज्जैन मे शिप्रा किनारे स्थित #अवन्ति_पार्श्वनाथ जैन मंदिर कोई साधारण मंदिर नहीं है। देश के जैन मतावलंबियों के लिए तो ये एक महत्वपूर्ण तीर्थ है ही, इतिहास की दृष्टि से भी, इसमें विराजित प्रतिमा उज्जयिनी की सबसे प्राचीन धरोहरों में से एक है।
Avanti Parshwanath
Avanti Parshwanath

#इतिहास 
जैन शास्त्रों में अवंति पार्श्वनाथ के चमत्कारों और अवंतिका नगरी से संबंधित कई सौ कथाएं और किवदंतियां मिल जाएंगी। पर यदि हम इतिहास के प्रमाणों को साथ लेते हुए चलें तो इस मन्दिर की ऐतिहासिकता के संबंध में कुछ ऐसी कहानी सामने आती है-

ईसा से तीसरी शताब्दी में सेठ अवन्ति सुकमाल उज्जयिनी नगरी के प्रसिद्ध श्रेष्ठि थे। उन्होंने अपने जीवन में जैन दीक्षा अंगीकार की और अंत में जैन परंपरानुसार संथारपूर्वक मृत्यु को प्राप्त हुए। उनके पुत्र महाकाल ने अपने पिता की स्मृति में एक मंदिर बनवाया जिसमे 23वें जैन तीर्थंकर भगवान पार्श्वनाथ की प्रतिमा को विराजमान किया गया। यह समय 300 ईस्वी के आसपास रहा होगा। इतिहासकारों के अनुसार इस समय उज्जयिनी जैन परंपरा के प्रभाव का सबसे महत्वपूर्ण क्षेत्र था। उज्जैन नगर उस समय भारतवर्ष की सोलह महाजनपदों में से एक अवंति की राजधानी हुआ करता था। शायद इसीलिए इस तीर्थ का नामकरण अवंति पार्श्वनाथ हुआ होगा।

प्रतिमा स्थापित होने के लगभग 200 वर्ष पश्चात 5वीं शताब्दी आते जैन तीर्थंकर की ये पद्मासन प्रतिमा पूजन सामग्रियों की वजह से शनैः शनैः एक शिवलिंग का आकर धारण कर चुकी थी। उस समय इसके जैन सम्बंध होने का आभास आम लोगों को नहीं था और ये शिवलिंग की ही तरह पूजी जा रही थी। उस समय उज्जयनी में गुप्त वंश के महाराज विक्रमादित्य का शासन प्रवर्तमान था।

उन्हीं दिनों आचार्य सिद्धसेन दिवाकर नामक एक जैन मुनि लोगों को समझाने लगे की शिवलिंग रूप में पूजी जा रही ये शिला वास्तव में भगवान पार्श्वनाथ की प्रतिमा है। विवाद की स्थिति बनने पर मामला राजा विक्रम के सामने आया। उन्होंने जैन मुनि को दण्डित करने का प्रयास किया पर जल्दी ही उन्हें मुनि की बातों में सच्चाई का आभास हो गया। शिला को बारीकी से साफ किया गया तो तीर्थंकर पार्श्वनाथ की कृष्णवर्णीय सुंदर पद्मासन प्रतिमा प्रकट हुई और फिर मंदिर को राज्यादेश से जैन मतावलंबियों को सौंप दिया गया।

इस कहानी से ये निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि शिप्रा किनारे स्थित अवंति पार्श्वनाथ की प्रतिमा कम से कम 1500 वर्ष पुरानी होकर प्राचीन धरोहर की श्रेणी में आती है और उज्जैन नगरी की प्राचीनता और महत्वता का एक और उदाहरण प्रस्तुत करती है।

#कल्याण-मंदिर स्त्रोत 
आचार्य सुद्धसेन दिवाकर ने इसी समय भगवान पार्श्वनाथ की भक्ति के लिए संस्कृत भाषा में 'कल्याण-मंदिर स्त्रोत' नामक मुक्तकों की रचना भी की जो वर्तमान में पूरे देश के जैन मतावलंबियों में अत्यंत प्रसिद्ध है।

#वर्तमान स्वरूप 
बीती शताब्दियों में इस ऐतिहासिक मंदिर के स्वरूप को कई बार बदला गया। जो नही बदला वो है यँहा स्थापित भगवान पार्श्वनाथ की मनोहारी प्रतिमा। 21वीं शताब्दी (2019) में एक बार फिर उस ऐतिहासिक जगह पर एक विशाल तीन शिखरों वाला सुंदर मंदिर खड़ा किया गया है जिसके उद्घाटन को इसके महत्व अनुसार ही बड़े महोत्सव का रूप दिया गया। परंतु फिर भी इस अत्यंत महत्वपूर्ण प्राचीन तीर्थ के गौरव को पुनर्स्थापित करने की दिशा में ये एक छोटा सा प्रयास ही माना जाएगा।

टिप्पणियाँ